Performed By: Ghulam Ali
Lyrics By: Mohsin Naqvi
ये दिल ये पागल दिल मेरा, क्यों भुज गया आवारगी
इस दश्त में इक शहर था, वो क्या हुआ, आवारगी
कल शब् मुझे बेशक्ल सी, आवाज़ ने चौंका दिए
मैंने कहा तू कौन है, उसने कहा आवारगी
इक तू की सदियों से मेरा, हमराह भी हमराज़ भी
इक मैं की तेरे नाम से ना-आशना, आवारगी
ये दर्द की तनहाइयां, ये दश्त का वीरान सफ़र
हम लोग तो उकता गए, अपनी सूना आवारगी
इक अजनबी झोंके ने जब, पूछा मेरे ग़म का सबब
सहरा की बीगी रेत पर, मैंने लिखा आवारगी
ले अब तो दश-इ-शब की, साड़ी वुसातें सोने लगीं
अब जागना होगा हमें, कब तक बता आवारगी
कल रात तनहा चाँद को, देखा था मैंने ख्वाब में
‘मोहसिन’ मुझे रास आएगी शायद सदा आवारगी