Performed By : मेहदी हसन
तेरी आँखों को जब देखा कमल कहने को जी चाहा
मैं शायर तो नहीं ग़ज़ल कहने को जी चाहा
तेरा नाज़ुक बदन छू कर हवाएं गीत गाती हैं
बहारें देख कर तुझको नया जादू जगाती हैं
तेरे होंठों को कलियों का बदल कहने को जी चाहा
मैं शायर तो नहीं…
इजाज़त हो तो आँखों में छुपा लूं ये हंसी जलवा
तेरे रुखसार पे कर लें मेरे लब प्यार का सजदा
तुझे चाहत के ख़्वाबों का महल कहने को जी चाहा
मैं शायर तो नहीं…